यहाँ पुरुषो को देखते ही महिलाये करती है ऐसा काम , जानकार आप भी हो जायेंगे सर्मसार
आज के 21 की सदी में महिला ससक्तकरण की बाते खूब कही और सुनी जाती है। समाज सेवी संस्थाओं से लेकर राजनितिक पार्टिया महिलाओं के हक और आजादी की बाते करते है पर सच्चाई तो यह है कि आज भी आधी आबादी कई बंदिशों में जकड़ी हुई है । खास कर ग्रामीण इलाकों में औरते इस कदर बंधी हुई है कि सशक्त होने की बात तो दूर है वो इक सामान्य जीवन भी जी नहीं पाती है । आज हम पुरुषो के साथ कदम से कदम महिलाओं के चलने की बाते करते है । पर आज भी इसी देश में ऐसा गांव भी है जहाँ महिलाएं कंधे से कन्धा मिलकर चलना तो क्या पुरुषो के सामने चपल तक नहीं पहन सकती ऐसा भी हमारे देश में गांव है आजकी सदी में हम ये यकीन नहीं मानते पर ये सही बात है जी , हा चंबल के गांव में आज भी महिलाये पुरुषो के सामने चप्पल नहीं पहनती है । चंबल के गांव में औरतों कड़ी सर्दी हो या जेठ की धुप हो या फिर पथरीले रस्ते हो अगर पुरुष सामने दिख जाय तो तो उन्हें अपने चप्पलो को हाथ में लेकर चलना पड़ता है । आज हम आपको गांव की इस अजीब परंपरा और उससे पीड़ित महिलाओं की आप बीती सुनाने जा रहे है ।
ये गांव है मध्यप्रदेश के चंबल में आने वाला अमेठ गांव , जहा औरते मर्दो के सामने चप्पल उत्तर कर नंगे पांव चलती है । लगभग 1200 की आबादी वाले इस गांव में महिलाओं की आबादी पांचसौ के तक़रीबन है। गांव में पानी कज दितकत है इस लिए यह हर सुबह तड़के 4 बजे औरते पानी के बर्तन लेकर डेढ़ किलोमीटर दूर पानी के झरने की तरफ जाती है । ऐसे में घर से निकल ते ही इन्हें चप्पल पाव में ना पहनकर हाथ में लेना पड़ता है । कि कही घर या पड़ोस का पुरुष इन्हें न देख ले वाही रस्ते में कोई मर्द मिल जाये तो उसके सामने भी नंगे पैर चलना पड़ता है । ऐसे में दिन के 7-8 धंटे घर परिवार के लिए पानी के इन्तजाम करने में थक कर चूर हो जाने वाली महिलाएं को गम है कि उसे अपनी परिवार और समाज में वो हक़ और इज्जत तक नहीं मिलती जिसकी वो हक़दार है।
इस परंपरा से रोज दो-चार हो जाने वाली शशिबाई बताती है, "शिर पर पानी या धास का बोझ लिए जब हम गांव में धूमते है तो चबूतरे पर पर बैठे बुर्जुगों के सामने से निकल ने के लिए हमें अपनी चप्पल उतारनी पड़ती है । एक हाथ ऐ चप्पल उतरने और दूसरे हाथ से सामान पकड़ने की वजह से कई बार हम खुद को संभाल नहीं पाते । "
शशिबाई आगे कहती है कि " क्योंकि ऐसा रिवाज सालो से चला आ रहा है तो इसे कैसे बदले ..अगर हम बदलने की बात भी करे सास -ससुर या देवर या फिर पति कहते है कि कैसी बहुये आइ है फेसनो के चलने पर बड़ो की इज्जत नहीं करती । बिना लक्षण बिना दिमाग के चप्पल पहन कर उड़ती रहती है ।” ऐसे में बरसात के कीचड़ वाले रास्ते हो या जाड़े में कड-कड़ की ठंडी हो सड़क या फिर गर्मियों में सभी ओरतो को इस परंपरा का पालन करना पड़ता है ।
यही गांव के मर्द उसको अपने 'पुरखों की परंपरा ' बताते हुए इस बात पर जोर देते है की ओरतो को पुरुषो की इज्जत की खातिर उनके सामने चप्पल पहन कर नहीं चलना चाहिये । गांव के बुर्जुन कहते है कि औरते को अपनी राजी ख़ुशी ऐसा कर रही है । हमने कोई जबर जस्ती नहीं की है । हमारी ओरते संम्मान में आज भी आज भी हमें देख कर दूर से ही चप्पल उत्तर लेती है । हलाकि गांव के कुछ युवा इनका विरोध कर रहे हैं । लिकिन पुराणी परम्परा पर उनकी कुछ नहीं चलती ।
अगर आप इस परंपरा को रखना चाहिये कि नहीं वो अपनी राय आप कमेंट बॉक्स में दे शकते है ।
यहाँ पुरुषो को देखते ही महिलाए करती है ऐसा काम की आप हो जायेंगे सर्मसार
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Sunday, December 24, 2017
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